प्रवक्ता हिन्दी (04): साहित्य, व्याकरण और भाषा विज्ञान का समग्र पाठ्यक्रम 2024
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड,
23, एलगंज, इलाहाबाद–211002
पाठ्यक्रम–प्रवक्ता
हिन्दी (04)
हिन्दी साहित्य का इतिहास
आदिकालीन साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ, भक्तिकाल, सन्तकाव्य, सूफ़ीकाव्य, रामभक्तिकाव्य, कृष्ण भक्तिकाव्य, रीतिकाव्य धारा, रीतिबद्ध, रीतिमुक्त, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, छायावाद, प्रगतिवाद, नयी कविता।
गद्य साहित्य का विकास
निबंध, नाटक, कहानी, उपन्यास, आलोचना। हिन्दी की लघु विधाओं का विकासात्मक परिचय, जीवनियाँ, संस्मरण, आत्मकथा, रेखाचित्र, यात्रा साहित्य, गद्यकाव्य एवं व्यंग्य।
काव्य शास्त्र
अवयव, भेद, रस, छंद, अलंकार, काव्यांग, काव्यलिंग, शब्द शक्तियाँ।
भाषा विज्ञान
हिन्दी की उप भाषाएँ, विभाषाएँ, बोलियाँ, हिन्दी शब्द सम्पद, हिन्दी की ध्वनियाँ।
व्याकरण
हिन्दी की वर्तनी, सन्धि, समास, लिंग, वचन, कारक, विराम चिह्नों का प्रयोग, पर्यायवाची, विलोम वाक्यों के लिए एक शब्द, वाक्य शुद्धि, मुहावरे, लोकोक्तियाँ।
संस्कृत-साहित्य
(क) संस्कृत साहित्य के प्रमुख रचनाकार एवं उनकी रचनाएँ, भाषा, कालिदास, भारवि, माघ, दण्डी, भवभूति, श्रीहर्ष, मम्मट, विशाखदत्त, राजशेखर।
(ख) व्याकरण – संधि, स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि, समास, विभक्ति, उपसर्ग, प्रत्यय, शब्दरूप, धातुरूप, काल अनुवाद।
प्रवक्ता हिन्दी (04): हिन्दी शिक्षा की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पाठ्यक्रम
हिन्दी भाषा और साहित्य का अध्ययन सदियों से भारतीय शिक्षा का एक अनिवार्य अंग रहा है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड द्वारा प्रस्तुत प्रवक्ता हिन्दी (04) का पाठ्यक्रम न केवल छात्रों को गहराई से हिन्दी साहित्य का ज्ञान कराता है, बल्कि उन्हें भाषा के व्याकरण और साहित्यिक विधाओं में भी निपुण बनाता है। यह पाठ्यक्रम हिन्दी साहित्य के इतिहास, काव्यशास्त्र, गद्य साहित्य, व्याकरण, और संस्कृत साहित्य की विविधताओं पर आधारित है।
हिन्दी साहित्य का इतिहास
हिन्दी साहित्य के विकास को जानना किसी भी हिन्दी भाषा के विद्वान के लिए आवश्यक है। पाठ्यक्रम में आदिकालीन साहित्य से लेकर नयी कविता तक की प्रमुख प्रवृत्तियों का अध्ययन शामिल है। इसमें विभिन्न कालखंडों को समझने पर जोर दिया गया है, जैसे कि भक्तिकाल, जिसमें सन्तकाव्य और सूफ़ीकाव्य जैसे विधाएं शामिल हैं। इसके अलावा रामभक्ति और कृष्णभक्ति काव्य भी इस काल में उभरे।
रीतिकाव्य धारा के तहत रीतिबद्ध और रीतिमुक्त काव्य का भी विशद अध्ययन करवाया जाता है। साहित्यिक युगों की बात करें तो भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, छायावाद, प्रगतिवाद और नयी कविता जैसी प्रवृत्तियों को पाठ्यक्रम में विशेष स्थान दिया गया है।
गद्य साहित्य का विकास
गद्य साहित्य में भी छात्रों को निबंध, नाटक, कहानी और उपन्यास जैसी गद्य विधाओं के विकास का गहन अध्ययन कराया जाता है। इसके अलावा हिन्दी की लघु विधाओं जैसे जीवनियाँ, संस्मरण, आत्मकथा, रेखाचित्र, यात्रा साहित्य, गद्यकाव्य और व्यंग्य का भी विकासात्मक परिचय दिया जाता है। इन विधाओं के माध्यम से छात्र समाज की विविध परतों को समझने और उनके साहित्यिक स्वरूप को पहचानने में सक्षम होते हैं।
काव्य शास्त्र और साहित्यिक सिद्धांत
काव्य शास्त्र का अध्ययन किसी भी साहित्यिक विद्यार्थी के लिए आवश्यक है। यह पाठ्यक्रम काव्य के अवयव, रस, छंद, अलंकार और काव्यांग जैसे महत्वपूर्ण तत्वों का विश्लेषण करता है। इसके साथ ही काव्यलिंग और शब्द शक्तियों पर भी गहन चर्चा होती है, जिससे छात्र साहित्यिक रचनाओं के भीतर छिपे साहित्यिक सौंदर्य को समझने में सक्षम होते हैं।
भाषा विज्ञान और व्याकरण
हिन्दी भाषा का विज्ञान, इसके उपभाषाओं, विभाषाओं, बोलियों और ध्वनियों का विश्लेषण इस पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण अंग है। भाषा विज्ञान के अध्ययन से छात्र हिन्दी की ध्वनियों, शब्द संरचनाओं और व्याकरणिक नियमों को गहराई से समझ सकते हैं।
व्याकरण के अंतर्गत हिन्दी की वर्तनी, सन्धि, समास, लिंग, वचन, कारक, और विराम चिह्नों का प्रयोग सिखाया जाता है। इसके अलावा पर्यायवाची, विलोम शब्द, वाक्य शुद्धि, मुहावरे, और लोकोक्तियाँ भी इस भाग में शामिल हैं, जो भाषा को और भी समृद्ध बनाते हैं।
संस्कृत साहित्य का अध्ययन
हिन्दी साहित्य के अध्ययन के साथ-साथ संस्कृत साहित्य का ज्ञान भी अनिवार्य है। संस्कृत साहित्य में कालिदास, माघ, भवभूति, श्रीहर्ष और मम्मट जैसे प्रमुख रचनाकारों और उनकी रचनाओं का अध्ययन किया जाता है। यह छात्रों को प्राचीन भारतीय साहित्य की समृद्धि और उसकी भाषा की गहराई से परिचित कराता है।
इसके अलावा, संस्कृत व्याकरण का भी व्यापक अध्ययन कराया जाता है, जिसमें सन्धि, समास, विभक्ति, उपसर्ग, प्रत्यय, और धातुरूप जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों का समावेश है।
निष्कर्ष
प्रवक्ता हिन्दी (04) का पाठ्यक्रम हिन्दी और संस्कृत साहित्य के गहन अध्ययन को प्रोत्साहित करता है। यह पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को हिन्दी साहित्य और भाषा की समृद्ध परंपरा से परिचित कराता है और उन्हें भाषा के विविध आयामों में दक्ष बनाता है। साहित्य और व्याकरण का यह समग्र अध्ययन विद्यार्थियों को साहित्यिक और भाषायी दृष्टि से निपुण बनाता है, जो आगे चलकर हिन्दी भाषा के शिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
यह पाठ्यक्रम न केवल शिक्षकों के लिए उपयोगी है, बल्कि उन विद्यार्थियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है जो हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में गहरी रुचि रखते हैं और इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं।